Friday, March 12, 2010

हरीवंश राय बच्चन -

सुबह सुबह उठकर क्या देखता हूँ की मेरे द्वार पर

खून रंगे हाथों के कई छाप लगे है

और मेरे पत्नीने स्वप्न देखा है

की एक नरकंकाल आधी रात को एक हाथ में

खून की बाल्टी लीये आता है ,

और दूसरा हाथ उसमे डुबोकर हमारे द्वार पर

खून का एक छाप लगाकर चला जाता है

फीर एक दूसरा आता है ,फीर दूसरा , फीर दूसरा -

यह बेगुनाह खून कीसका है ?

क्या उनका , जो सदीयोसे सताए गए

जगह जगह से भगाए गए

दुःख सहने के इतने आधीन हो गए के वीद्रोह के सारे भाव ही खो गए

और जब मौत के मुह में जाने का हुक्म हुआ

नीर्वीरोध चुपचाप चले गए

और उसकी वीषैली सांसोमे घुटकर

सदा के लीये सो गए ?

उनके रक्त की छाप अगर लगनी थी तो

कीसके द्वार पर ?

यह बेजुबान खून कीनका है ?

क्या उनका ,जीन्होंने आत्महन शासन के शीकंजे की पकड़ से

जकड से छूटकर ,उठने का , उभरने का प्रयत्न कीया था

और उन्हें दबाकर , डालकर , कुचलकर

पीस डाला गया -

उनके रक्त की छाप अगर लगनी थी तो

कीसके द्वार पर ?

यह जवान खून कीनका है ?

क्या उनका , जो अपनी मारी का गीत गाते

अपनी आज़ादी का नारा लगाते

हाथ उठाते , पाव बढ़ाते आये थे ,

पर ऐसी चट्टान से टकराकर

अपना सीर फोड़ रहे है

जो न टलती है , न हीलती है , न पीघल्ती है

उनके रक्त की छाप अगर लगनी थी तो

कीसके द्वार पर ?

यह मासूम खून कीनका है ?

क्या उनका , जो अपने श्रम से , धुप में , ताप में , धूली में ,

धुएं में , सनकर काले होकर

अपने सफ़ेद उन स्वामीयों के लीये साफ घर ,साफ नगर

स्वच्छ पथ उठाते रहे बनाते रहे

पर उनपर पाव रखने , उनपर बैठने का मूल्य अपने प्राणों से चुकाते रहे

उनके रक्त की छाप अगर लगनी थी तो

कीसके द्वार पर ?

यह बेपनाह खून कीनका है ?

क्या उनका , तवारीख की एक रेख से

अपने ही वतन में जला एक वतन है

जो बहुमत के आवेश पर , सनक पर ,पागलपन पर

अपराधी ,दंड्य और वध्य करार दीये जाते है

नीर्वास , नीर्धन , नीर्वसन , नीर्मन क़त्ल कीये जाते है

उनके रक्त की छाप अगर लगनी थी तो

कीसके द्वार पर ?

यह बेमालूम खून कीनका है ?

क्या उन सपनों का , जो एक उगते हुए राष्ट्र की

पलकों पर झूले थे ,पुतालीयों में पले थे

पर लोभ ने , स्वार्थ ने , महत्वाकंक्षाने जीनकी आँखे फोड़ दी है

जीनकी गर्दने मरोड़ दी है

उनके रक्त की छाप अगर लगनी थी तो

कीसके द्वार पर ?

लेकीन इस अमानवीय अत्याचार , अन्याय , अनुचीत

अकरणीय अकरुण का दायीत्व कीसने लीया ?

जीसके भी द्वार पर ये छाप लगे

उसने पानी से धुला दीया ,चुने से पुता दीया

कीन्तु कवीद्वार पर छपे ये लगे रहे

जो अनीती -अत्ती की कथा कहे , व्यथा कहे ,

और शब्द्यद्न्य में मनुष्य के कलुष दहे

और मेरी पत्नी ने स्वप्न देखा है

की यह नरकंकाल कवी -कवी के द्वार पर ऐसे ही छपे लगा रहे है

ऐसी ही शब्द्ज्वाला जगा रहे है

No comments:

Post a Comment